ASHOK KUMAR
जमशेदपुर : टाटानगर रेलवे स्टेशन का री-डेवलपमेंट करने का आदेश रेलवे बोर्ड से ही दे दिया गया है. इसकी आधारशिला भी रखी जा चुकी है, लेकिन इसमें सबसे बड़ा बाधक अवैध कब्जा ही है. यही रेलवे के लिए सबसे बड़ा रोड़ा बना हुआ है. रेलवे की जमीन से अवैध कब्जा हटा पाना जिला प्रशासन और रेल प्रशासन के लिए आसान नहीं होगा. इसको लेकर फिर से राजनीति शुरू हो जाएगी. राजनीति भी वही करते हैं जो नेता अवैध रूप से रेलवे की जमीन पर कब्जा कर आलीशान मकान बनाए हुए हैं.
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रेल प्रशासन की लापरवाही से हो गया कब्जा
रेलवे की ओर से 1998 में टाटानगर स्टेशन के बाहर और रेलवे ट्रॉफिक कॉलोनी से लेकर कीताडीह तक रेलवे की जमीन पर बने अवैध मकानों को जमींदोज किया गया था. आज वहां पर फिर से अवैध कब्जा हो गया है. इसके लिए रेल प्रशासन और आरपीएफ मुख्य रूप से जिम्मेवार है.
आखिर रेलवे की श्मशान पर कैसे हो गया कब्जा
रेलवे की और से कीताडीह त्रिमूर्ति चौक पर 10 दशक पूर्व एक श्मशान बनाया गया था. इस श्मशान में ही ट्रेन से कटने वाले अज्ञात शवों को दफनाया जाता था, लेकिन इस श्मशान पर ही कब्जा हो गया है. यह श्मशान झारखंड अलग राज्य बनने के पहले तक अपने अस्तित्व में था.
अवैध कब्जा के लिए आखिर कौन है जिम्मेवार
रेलवे की जमीन पर अवैध कब्जा के लिए आखिर कौन जिम्मेवार है. इसके लिए कहां पैसा नहीं पहुंचता है. आरपीएफ से लेकर स्थानीय पुलिस और रेल अधिकारियों तक इसकी रकम पहुंचती है.
आरपीएफ थाना के सामने कैसे हो गया अतिक्रमण
सबसे आश्यचर्यजनक बात तो यह है कि आखिर आरपीएफ थाना के ठीक सामने कैसे अतिक्रमण हो गया. क्या आरपीएफ को इसकी जानकारी नहीं है. यहां पर अवैध रूप से दुकानें लगती है. ठीक चाईबासा बस स्टैंड को लेकर खुफिया विभाग की ओर से कुछ साल पहले यह सूचना दी गई थी कि यहां पर अवैध रूप से दुकानों के लगने से कभी भी बड़ा हादसा हो सकता है. आज इसका प्रभाव तनिक भी नहीं पड़ता है.
आसान नहीं है बागबेड़ा से अवैध कब्जा हटाना
बागबेड़ा हाउसिंग कॉलोनी की बात छोड़ दें तो बाकी के हिस्से से अवैध कब्जा हटाना आसान नहीं होगा. बागबेड़ा रेलवे हाई स्कूल के आस-पास के रेलवे क्वार्टरों को रेलवे की ओर से जर्जर बताकर पहले से ही तोड़ दिय गया है, लेकिन वहां पर फिर से अवैध कब्जा हो गया है. कुल मिलाकर यह कहा जाए कि रेलवे के री-डेवलपमेंट में अभी रोड़ा ही रोड़ा है.