जमशेदपुर : आदिवासी मरणासन्न है. रोज मर रहा है. खुद को मार रहा है. चूंकि झारखंड और बृहद झारखंड के लगभग सभी आदिवासी गांव में मताल (नशे में धुत्त), नासमझ (मूर्ख), गुलाम (जो समाज के बारे में सोच और बोल नहीं सकते), लोभी-लालची, स्वार्थी और अपने पेट-परिवार और सत्ता के लिए राजनीति करने वालों का कब्जा है. अंततः सभी आदिवासी गांव में अभी तक नशापान, अंधविश्वास, डायन प्रथा, ईर्ष्या द्वेष, महिला विरोधी मानसिकता, वोट की खरीद बिक्री, धर्मांतरण, वंशानुगत स्वशासन व्यवस्था आदि चालू है. सिकी भी आदिवासी गांव में एकता नहीं है. सभी आदिवासी गांव को मताल, मूर्ख, गुलाम और स्वार्थी कुछ लोग चला रहे हैं. गांव के लोगों को हमेशा नाच गान, खाना पीना, खेल कूद, मेला, ड्रामा, झाड़ फूंक, पिकनिक, एजेंडा विहीन बैठकों आदि में उलझा कर रखते हैं. ताकि वे जाग न सकें और सच और झूठ, सही और गलत को समझ न जाए.
कुछ ऊंची और संगठित जाति के लोग आदिवासी (ST) बनने के लिए रोज तैयार हो रहे हैं. जिनको सभी पार्टी और हमारे अपने आदिवासी एमएलए/एमपी भी खुलकर समर्थन दे रहे हैं. मणिपुर इसी मुद्दे पर जल रहा है. दूसरी तरफ सरना धर्म कोड नहीं मिला तो हम सभी आदिवासी को जबरन हिंदू, मुसलमान, ईसाई आदि बनना ही पड़ेगा. हमारा हासा, भाषा, जाति, धर्म, रोजगार, इज्जत, आबादी आदि सब लूट-मिट जाएगा. समाज सुधार के साथ एजेंडा (हासा-भाषा) आधारित बृहत आदिवासी एकता और जन आंदोलन ही बचने-बचाने का एकमात्र रास्ता है.
पढ़े-लिखे लोग चुप रहते हैं
क्या हम आदिवासी समाज को बचाने में लगे हैं? शायद नहीं. अन्यथा हर आदिवासी गांव जागरुक हो जाता. उल्टा हम अधिकांश आदिवासी पार्टियों में बंटे हैं. स्वार्थी नेताओं के पीछे भाग रहे हैं. गैर राजनीतिक और सामाजिक जन संगठन के नाम पर राजनीति करते हैं. समाज को बचाने की जगह संगठन को बचाने का काम करते हैं. आदिवासी जनता को रोज ठगते हैं. गुमराह करते हैं. अधिकांश पढ़े-लिखे लोग गुलाम की तरह चुप रहते हैं. आदिवासी स्वशासन व्यवस्था वंशानुगत स्वशोषण का रूप ले चुका है. अतः रोज आदिवासी समाज को मारने का काम खुद हम आदिवासी कर रहे हैं. अभी भी समय है संगठनों की भेदभाव, ईर्ष्या द्वेष, सोच और व्यवहार की संकीर्णता आदि को छोड़कर सच और झूठ, सही और गलत को स्वीकार कर लें तो निश्चित बच सकते हैं.
सर्वोच्च पद पर हैं आदिवासी राष्ट्रपति
भारत के हम आदिवासियों के लिए यह कैसी विडंबना है कि देश के सर्वोच्च संवैधानिक महामहिम राष्ट्रपति के पद पर भी एक आदिवासी है. भारत के संविधान में धार्मिक आजादी की व्यवस्था मौलिक अधिकार है. हमारी संख्या मान्यता प्राप्त जैनों से ज्यादा है. तब भी हमें धार्मिक आजादी से वंचित करना अन्याय, अत्याचार और शोषण नहीं तो क्या है? आखिर हम जाएं तो कहां जाएं ? अतएव फिर 7 अप्रैल 2024 को भारत बंद, रेल- रोड चक्का जाम को हम मजबूर हैं, यदि 31 मार्च 2024 तक सरना धर्म कोड की मान्यता के लिए सभी संबंधित पक्ष कोई सकारात्मक घोषणा नहीं करते हैं. यह भारत बंद अनिश्चितकालीन भी हो सकता है. भारत के आदिवासियों को धार्मिक आजादी मिले इसके लिए आदिवासी सेंगेल अभियान सभी राजनीतिक दलों और सभी धर्म यथा हिंदू, मुसलमान, सिख, ईसाई, जैन, बौद्ध आदि के प्रमुखों से आग्रह करती है कि वे भी मानवता और प्रकृति-पर्यावरण की रक्षार्थ हमें सहयोग करें. महामहिम राष्ट्रपति जी, आपको संविधान सम्मत सरना धर्म कोड देना ही होगा.
विनाश साबित हो रहा है आदिवासियों के लिए विकास
सेंगेल किसी पार्टी और उसके वोट बैंक को बचाने के बदले आदिवासी समाज को बचाने के लिए चिंतित है. चुनाव कोई भी जीते आदिवासी समाज की हार निश्चित है. आजादी के बाद से अबतक आदिवासी समाज हार रहा है. लुट मिट रहा है. विकास आदिवासियों के लिए विनाश ही साबित हो रहा है. क्योंकि अधिकांश पार्टी और नेता के पास आदिवासी एजेंडा और एक्शन प्लान नहीं है. अंततः अभी तक हम धार्मिक आजादी से भी वंचित है. अतः फिलवक्त सरना धर्म कोड आंदोलन हमारी धार्मिक आज़ादी के साथ बृहद आदिवासी एकता और भारत के भीतर आदिवासी राष्ट्र के निर्माण का आंदोलन भी है. सेंगेल का नारा है आदिवासी समाज को बचाना है तो पार्टियों की गुलामी मत करो, समाज की बात करो और काम करो. आदिवासी हासा, भाषा, जाति, धर्म, रोजगार आदि की रक्षा करो. मगर जो सरना धर्म कोड देगा आदिवासी उसको वोट देगा.
आदिवासियत को जगाएं
ईश्वर ने आपको आदिवासी पैदा किया है. तो क्या आप अपने भीतर के आदिवासियत को जगाएंगे? आदिवासी को बचाने में आज से सहयोग करेंगे? कम से कम एक आदिवासी गांव-समाज को जगाने में साथ देंगे. अन्यथा आप अपने आप और अपने बाल-बच्चों के साथ भी धोखा ही करेंगे.