जमशेदपुर : आदिवासी मरणासन्न है. रोज मर रहा है. खुद को मार रहा है. चूंकि झारखंड और बृहद झारखंड के लगभग सभी आदिवासी गांव में मताल (नशे में धुत्त), नासमझ (मूर्ख), गुलाम (जो समाज के बारे में सोच और बोल नहीं सकते), लोभी-लालची, स्वार्थी और अपने पेट-परिवार और सत्ता के लिए राजनीति करने वालों का कब्जा है. अंततः सभी आदिवासी गांव में अभी तक नशापान, अंधविश्वास, डायन प्रथा, ईर्ष्या द्वेष, महिला विरोधी मानसिकता, वोट की खरीद बिक्री, धर्मांतरण, वंशानुगत स्वशासन व्यवस्था आदि चालू है. सिकी भी आदिवासी गांव में एकता नहीं है. सभी आदिवासी गांव को मताल, मूर्ख, गुलाम और स्वार्थी कुछ लोग चला रहे हैं. गांव के लोगों को हमेशा नाच गान, खाना पीना, खेल कूद, मेला, ड्रामा, झाड़ फूंक, पिकनिक, एजेंडा विहीन बैठकों आदि में उलझा कर रखते हैं. ताकि वे जाग न सकें और सच और झूठ, सही और गलत को समझ न जाए.
