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झारखंड की राजनीति में कहां खड़ा है आदिवासी समाज: सालखन
झारखंड की राजनीति में हेमंत सोरेन रहे या चंपाई सोरेन या बाबूलाल मरांडी आदिवासी समाज की बर्बादी तय है. क्योंकि कोई भी सीएनटी/एसपीटी कानून लागू कर आदिवासी हासा अर्थात भूमि बचाने वाला नहीं है. बल्कि खुद इन कानूनों का उल्लंघन करते हैं.
जमशेदपुर : पूर्व सांसद सह आदिवासी सेंगेल अभियान के राष्ट्रीय अध्यक्ष सालखन मुर्मू का कहना है कि आदिवासी समाज बर्बादी की कगार पर खड़ा है. झामुमो जीते या बीजेपी जीते, आदिवासी की हार निश्चित है. चूंकि आदिवासी हासा, भाषा, जाति, धर्म, रोजगार आदि के संरक्षण और संवर्धन का एजेंडा किसी भी गठबंधन के पास नहीं है. आदिवासी केवल मोहरा है. वोट बैंक है. “अबुआ दिशोम अबुआ राज” के सपना को बर्बाद करने के लिए आदिवासी नेता और जनता दोनों सर्वाधिक दोषी है. चूंकि अधिकांश मुद्दाविहीन और बिकाऊ हैं और सभी पर मुद्रा हावी है.
आदिवासी भाषा-संस्कृति को समृद्ध करने की इनकी कोई योजना नहीं है. एकमात्र राष्ट्रीय मान्यता प्राप्त संताली भाषा को झारखंड की प्रथम राजभाषा बनाने का कोई पक्षधर नहीं है. उल्टे झामुमो ने वोट की लालच में 7232 उर्दू भाषा शिक्षकों के नियुक्ति की घोषणा कर दी है. जेएमएम ने खुद कुर्मी, महतो को ST बनाने की अनुशंसा कर असली आदिवासी जातियों को फांसी के फंदे पर लटकाने का डेथ वारंट में हस्ताक्षर कर दिया है.
सरना धर्म कोड पर की गंभीर नहीं
सालखन मुर्मू का कहना है कि प्रकृति पूजक आदिवासियों के सरना धर्म कोड के मामले पर कोई गंभीर नहीं है. उल्टे झामुमो ने आदिवासियों के ईश्वर मरांग बुरू (पारसनाथ पहाड़) को जैनों के हाथों बेचने का काम किया है. झारखंड का दुर्भाग्य है कि यहां अबतक झारखंडी डोमिसाइल, न्यायपूर्ण आरक्षण और नियोजन की कोई नीति निर्धारण नहीं हो सकी है.
जनता को थमाया 1932 का झुनझुना
जनता को 1932 का झुनझुना थमा दिया गया है. लाखों स्थानीय शिक्षित बेरोजगार भटक रहे हैं. इसके लिए सभी पार्टी दोषी है. झारखंडी जनता को विस्थापन-पलायन, ह्यूमन ट्रैफिकिंग आदि से बचाने में किसी को कोई दिलचस्पी नहीं है.
हेमंत ने गिरफ्तारी के पहले क्यों इस्तीफा दी
फिलवक्त हेमंत सोरेन गिरफ्तार हैं. गिरफ्तारी के पहले इस्तीफा क्यों दिया और क्या मजबूरी थी कि उनको 40 घंटे तक छुपना पड़ा? झामुमो के अंधभक्त अब उन्हें बेदाग और फंसाये जाने की दलील देकर सोरेन खानदान को बचाने की बात कर रहे हैं. जबकि सच्चाई यह है कि सोरेन खानदान और उसके अंधभक्त और भ्रष्ट अफसरों ने मिलकर झारखंड को लूट, झूट और भ्रष्टाचार का अड्डा बना दिया है. सोरेन खानदान को बचाने के बदले आदिवासी समाज को अपनी हासा, भाषा, जाति, धर्म, रोजगार आदि को बचाने का अंतिम प्रयास करना चाहिए. आंदोलन करना चाहिए.
बाबूलाल मरांडी के पास भी एजेंडा नहीं
दुर्भाग्य बाबूलाल मरांडी और बीजेपी के पास आदिवासी एजेंडा तो दूर आदिवासी समाज के लिए कोई दिल की धड़कन तक नहीं है. अन्यथा उपरोक्त मुद्दों पर आदिवासी समाज को धोखा देनेवाली सोरेन खानदान को बीजेपी बेनकाब कर सकती थी. भ्रष्टाचार के मामले को कोर्ट तय करेगी मगर समाज के ज्वलंत मुद्दों को तो पार्टियों को ही तय करना पड़ता है. अन्ततः आदिवासी समाज के लिए एक तरफ कुआं तो दूसरी तरफ खाई है. चूंकि आदिवासी समाज के लिए दोनों ही गठबंधन बेकार जैसे हैं.