ट्विंकल गुप्ता
जमशेदपुर।
अद्भुत सकल सृष्टि कर्ता, सत्य ज्ञान सृष्टी जग हित धर्ता, अतुल तेज तुम्हारो जगमाही, कोई विश्वमही जानत नाही.
क्यों मनाया जाता हैं भागवान विश्वकर्मा पूजा
सृष्टि के सबसे बड़े और अद्भुत शिल्पकार, संसार के पहले इंजीनियर और वास्तुकार, जी हां मैं बात कर रही हुं भगवान विश्वकर्मा की जिन्होनें ब्रह्माजी के साथ मिलकर इस सृष्टि का निर्माण किया था। हर साल 17 सितंबर को मनाये जाने वाला ये त्योहार बहुत खास है. तो आईए जानते हैं कि क्यों है ये दिन इतना खास और क्यों मनाया जाता हैं विश्वकर्मा पूजा?
है।समुचे ब्रम्हांड के सबसे बड़े और अद्भुत शिल्पकार विश्वकर्मा जी की पूजा का पर्व हर साल की तरह इस बार भी 17 सितंबर, यानि शुक्रवार को मनाया जाएगा. पौराणिक प्रसंगों के अनुसार इस दिन भगवान विश्वकर्मा का जन्म हुआ था, इसलिए इसे विश्वकर्मा जयंती भी कहा जाता है। देवलोक के मुख्य अभियंता एवं ब्रह्मांड के निर्माण में ब्रह्मा जी के मुख्य सहयोगी भगवान विश्वकर्मा ही हैं। विश्वकर्मा जी को ब्रह्मा जी के सातवें पुत्र के रूप में भी माना जाता है। विश्वकर्मा पुराण के अनुसार आदि नारायण ने सर्वप्रथम ब्रह्माजी और फिर विश्वकर्मा जी की रचना की। भगवान विश्वकर्मा को संसार का पहला इंजीनियर और वास्तुकार माना जाता है। मान्यता है कि इन्होंने ब्रह्माजी के साथ मिलकर इस सृष्टि का निर्माण किया था। विश्वकर्मा पूजा के दिन विशेष तौर पर औजारों, निर्माण कार्य से जुड़ी मशीनों, दुकानों, कारखानों और संस्थानों में शिल्प देव विश्वकर्मा की पूजा की जाती है।
भागवान विश्वकर्मा को निर्माण और यंत्रों का देवता भी माना जाता
ये तो आपने जाना की क्यो मनाया जाता है विश्वकर्मा पुजा या हर वर्ष 17 सितंबर का पावन दिन. लेकिन क्या आपको मालुम है कि भगवान विश्वकर्मा को निर्माण और यंत्रों का देवता भी माना जाता है. आखिर क्यों वाहनों से लेकर कारखानों तक और औजारों से लेकर दुकानों तक आज के दिन साफ सफाई कर पुजा की जाती है. नहीं. तो आईए आपको बतलाते हैं इसके पिछे छुपी कुछ आलौकिक कथाएं.
हिंदू मान्यताओं के अनुसार प्राचीन काल में देवताओं के महल और अस्त्र-शस्त्र भगवान विश्वकर्मा ने ही बनाए थे. इसलिए इन्हें निर्माण का देवता कहा जाता है। शास्त्रों में ऐसा भी कहा गया है कि ब्रह्माजी के निर्देश पर ही विश्वकर्माजी ने इंद्रपुरी, त्रेता में लंका, द्वापर में द्वारिका और हस्तिनापुर, कलयुग में जगन्नाथपुरी का निर्माण किया था। इसके अलावा श्रीहरि भगवान विष्णु के लिए सुदर्शन चक्र, शिव जी का त्रिशूल, पुष्पक विमान, इंद्र का व्रज भी भगवान विश्वकर्मा ने ही बनाया था। तो इस तरह भगवानों के अस्त्रों-शास्त्रों से लेकर उनके महलों तक को बनाने का श्रेय भगवान विश्वकर्मा को ही जाता है.
जमशेदपुर में काफी धूमधाम से होती है विश्वकर्मा पूजा
अब चलिए बात करते हैं लौहनगरी के विश्वकर्मा पुजा की. लौहनगरी जमशेदपुर में सभी धर्म व प्रांत के लोग रहते हैं। यही वजह है कि यहां देशभर के विभिन्न राज्यों में मनाए जाने वाले पर्व-त्योहार धूमधाम से मनाए जाते हैं, जिसका आनंद सभी लोग उठाते हैं और विश्वकर्मा पुजा भी इनमें से एक है. जैसा की नाम ही लौहनगरी है तो यहां विश्वकर्मा पुजा की धुम लाजमी है.
पिछले 2 वर्षो से कोरोना महामारी की वजह से लौहनगरवासीयो ने बड़े ही साधारण तौर पर विश्वकर्मा पुजा मनाया. लेकिन इस साल बीते दो वर्षो का कसर पूरा करने के लिए लोग बिल्कुल तैयार है. विश्वकर्मा पुजा के समय घर तो घर पुरा बाजार रंग-बिरंगी फुलों, लडईयो, तोरणद्वारों और तरह-तरह की स्वदिस्ट मिट्ठाईयों से सजा हुआ है. शहर के साकची, बिष्टुपुर, मानगो,जुगसलाई स्थित दुकानों में झालर व फूल से बाजार पट गए हैं। श्रद्धालु वाहनों व पूजा पंडालों को सजाने के लिए फूल-झालर की खरीदारी करने लगे है। शहर का ऑटो स्टैंड हो या फिर बस स्टैंड सभी जगहों पर भगवान विश्वकर्मा की पूजा अर्चना की जाती है. बारिडीह ऑटो स्टैंड, साकची ऑटो स्टेंड सहित विभिन्न संस्थानों में भगवान विश्वकर्मा की पूजा की जा रही है. और ऐस में विश्व प्रसिद्ध टाटा स्टील, टाटा मोटर्स को कैसै भुल सकते हैं. जी हां कम्पनी में भी विश्वकर्मा पुजा देखते ही बनती है और इस दिन का कर्मचारियों को काफी इंतजार रहता है. शहर में कई जगहों पर पूजा के लिए भव्य पंडालों का निर्माण किया जाता है. छोटे- या बड़े किसी का किसी रूप लगभग सभी शिल्पदेव विश्वकर्मा की मुर्ती की स्थापना करते हैं. भगवान विश्वकर्मा की पूजा को देख कर ऐसा प्रतित होता है कि मानिए पूरा शहर भक्तिमय हो गया है.
भगवान विश्वकर्मा के अनेक रूप बताए जाते हैं। उन्हें कहीं पर दो बाहु, कहीं चार, कहीं पर दस बाहुओं और एक मुख, और कहीं पर चार मुख व पंचमुखों के साथ भी दिखाया गया है। उनके पाँच पुत्र- मनु, मय, त्वष्टा, शिल्पी एवं दैवज्ञ हैं। यह भी मान्यता है कि ये पाँचों वास्तुशिल्प की अलग-अलग विधाओं में पारंगत थे और उन्होंने कई वस्तुओं का आविष्कार भी वैदिक काल में किया। इस प्रसंग में मनु को लोहे से, तो मय को लकड़ी, त्वष्टा को कांसे एवं तांबे, शिल्पी ईंट और दैवज्ञ को सोने-चाँदी से जोड़ा जाता है।
कहा जाता है कि भगवान विश्वकर्मा ही ऐसे देवता हैं जो हर काल में सृजन के देवता रहे हैं. इस सम्पूर्ण सृष्टि में जो भी चीजें सृजनात्मक हैं, जिनसे जीवन संचालित होती है वो सब भगवान विश्कर्मा की देन है. तो आप भी विधि-विधान से भगवान विश्व कर्मा की आराधना किजिए और हर्षो उल्लास के साथ त्योहार मनाईए. इंसाइड झारखंड के सभी दर्शको को विश्वकर्मा पुजा की ढेरों शुभकामनंए.